समाज में इन दिनों चतुर्दिक प्रगति हुई दिखाई देती है। इन्हें संतोषजनक और मानवीय सभ्यता के विकास का सूचक कहा जा सकता है; लेकिन नैतिक मूल्यों में आई गिरावट और चारित्रिक आदर्शों की आम उपेक्षः का रोग जिस तरह फैल रहा है; उसे देखते हुए तमाम प्रगति पर पानी फिर गया लगता है। समाज में व्याप्त हो रहीं इन विकृतियों को दूर करने में या बाह्य प्रगति के साथ व्यक्ति का आंतरिक स्तर ऊँचा उठाने में स्त्रियाँ अधिक सक्रीय भूमिका निभा सकती हैं।
There seems to be all-round progress in the society these days. These can be said to be satisfactory and indicators of the development of human civilization; But the decline in moral values and the general neglect of character ideals is the way the disease is spreading; Looking at him, all progress seems to have been dashed. Women can play a more active role in removing these distortions that are prevailing in the society or in raising the inner level of the individual with the external progress.
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...