हमारे पास धन-दौलत अथवा अन्य किसी भी प्रकार की समृद्धि आती है तो हम उसे सहेजकर रख लेते हैं। धन की प्रायः तीन गतियाँ कही गई हैं - सदुपयोग, दुरूपयोग अथवा विनाश। यदि हम अर्जित धन-दौलत अथवा समृद्धि का सदुपयोग नहीं करेंगे तो उसका दुरूपयोग अथवा विनाश अवश्यंभावी है। समझदार व्यक्ति अपने धन-दौलत का न केवल सदुपयोग करते हैं, अपितु अतिरिक्त धन-दौलत को किसी उपयोगी व्यवसाय में लगा देते हैं अथवा बैंक में डाला देते हैं। पैसा भी सुरक्षित हो जाता है और अतिरिक्त आय भी नियमित रूप से होती रहती है। अच्छी आदतों अथवा सद्गुणों के संबंध में भी यही बात कही जा सकती है। सद्गुणों का उपयोग नहीं करेंगे तो उनका भी विनाश हो जाएगा और उनसे होने वाले लाभों से हम वंचित रह जाएंगे। यह एक ऐसा निवेश है जिसे हर व्यक्ति न केवल सुगमतापूर्वक कर सकता है, अपितु जितनी अधिक मात्रा में चाहे कर सकता है।
When we get wealth or any other kind of prosperity, we save it. There are generally three directions of wealth - good use, misuse or destruction. If we do not make good use of the wealth or prosperity we acquire, then its misuse or destruction is inevitable. Wise people not only make good use of their wealth, but also invest the extra wealth in some useful business or put it in the bank. Money also becomes safe and additional income also comes regularly. The same can be said about good habits or virtues. If we do not use the virtues, they will also be destroyed and we will be deprived of the benefits derived from them. This is an investment that every person can not only make easily, but can make in as much quantity as he wants.
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...