अनियंत्रित विचार उस तेज गाड़ी की तरह होते हैं, जिस पर यदि ब्रेक न लगाया जाए, तो दुर्घटना घट सकती है। जिनके विचार अनियंत्रित होते हैं, वे मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाते हैं। विचार उनके मस्तिष्क में बहुत अनियंत्रित रूप से आते हैं, लेकिन वे न तो विचारों को ग्रहण कर पाते हैं और न ही उनमें किसी तरह का कोई सामंजस्य बिठा पाते हैं। विक्षिप्त व्यक्तियों के विचार अस्पष्ट होते हैं। इसीलिए वे न तो अपनी बात किसी से कह पाते हैं और न ही दूसरों की बातों को समझ पाते हैं।
Uncontrolled thoughts are like a speeding car which, if the brakes are not applied, can cause an accident. Those whose thoughts are uncontrolled, they become mentally deranged. Thoughts come into their mind very uncontrollably, but they are neither able to accept the ideas nor can they get any kind of harmony in them. The thoughts of neurotic people are ambiguous. That is why they are neither able to tell their point of view to anyone nor can they understand the words of others.
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...