हर व्यक्ति एक विशिष्ट उद्देश्य के साथ अपनी भूमिका निभाने के लिए धरती पर आया है, परमात्मा के विश्व उद्यान को सुन्दर-सुरम्य बनाने के लिए भेजा गया है। जरूरत अपने मौलिक स्वरूप को पहचानने की, जीवन के मूल लक्ष्य को समझने की है। वह मौलिक बीज क्या है, वह मौलिक बीज क्या है, जो अंकुरित होने की बाट जोह रहा है। वह मौलिक विचार-भाव क्या है, जो अभिव्यक्त होने के लिए कुलबुलाता है। वह मौलिक विशेषता क्या है, जो इस सृष्टि के सौंदर्य में एक नया आयाम जोड़ने वाली है।
Every person has come to earth to play his part with a specific purpose, to beautify the world garden of God. The need is to recognize its original nature, to understand the basic goal of life. What is that primordial seed, what is that primordial seed, waiting to germinate. What is that original thought that clamors to be expressed? What is that fundamental feature, which is going to add a new dimension to the beauty of this creation.
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...