बदलता परिदृश्य
जैसा हि बदलता हुआ परिदृश्य सभी को दिखाई दे रहा है। बच्चों को अक्सर हायर एजुकेशन के लिए घर से दूर जाना पड़ता है। जो विदेशों में या बड़े शहरों में चले जाते हैं, उनमें से कुछ तो कभी नहीं लौटते, रिटायर्ड माँ-बाप को कुछ रुपए भेजकर छुट्टी पा लेते हैं, जो बाद में कम होते-होते लगभग बंद हो जाते हैं। वे उनकी मृत्यु के समय उपस्थित होते हैं और सिर मुंडा कर गायब हो जाते हैं। हालांकि पहले एक बात साफ कर दूँ कि यह पूरे समाज की हालत नहीं है। गांव में हालात कुछ बेहतर हैं। 60 के आस-पास के दम्पती, जिनके बच्चे आत्मनिर्भर हैं, इस बात को बखूबी समझ सकते होंगे। कुछ माँ-बाप तो बच्चों की बदलती आवश्यकताओं, मूड, फ्रेंड सर्कल से तालमेल बिठाने की पूरी कोशिश करते हैं, पर अधिकांश तो इतना भी नहीं कर पाते और हर वक्त शिकायतों से भरे नजर आते हैं।
The changing scenario is visible to all. Children often have to go far away from home for higher education. Those who go abroad or to big cities, some of them never return. They send some money to their retired parents and get rid of it, which later reduces and almost stops. They are present at the time of their death and then shave their heads and disappear. However, let me first make one thing clear that this is not the condition of the entire society. The situation in villages is somewhat better. Couples around 60, whose children are self-reliant, can understand this very well. Some parents try their best to adjust to the changing needs, moods, friend circle of their children, but most are not able to do even this much and are seen full of complaints all the time.
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