वृक्षारोपण के कार्य में स्वयं श्रम करना था दूसरों को उसके लाभ समझना; ये दोनों ही कार्य साथ-साथ चलने चाहिए। स्वयंसेवक ही दौड़-धूप करते रहें था और लोग निष्क्रिय बने रहें; तो भी कुछ कार्य न चलेगा। वस्तुतः यह कार्य जन-जन में अभीष्ट चिन्ता उत्पन्न होने से ही संभव हो सकता है। स्वयंसेवक तो अपने क्रिया-कलाप से उत्साह उत्पन्न करने एवं मार्गदर्शन करने का काम ही कर सकते हैं। सारे देश को हरा-भरा बनाने के लिए तो प्रत्येक नागरिक में व्ययक्तिक एवं सामाजिक कर्तव्यपालन की वृद्धि होनी चाहिए। हरियाली की समीपता में शोभा, सौंदर्य, आरोग्य एवं राष्ट्रिय तथा मानवीय समस्याओं के समाधान की दृष्टि जुड़ सके, तो ही इस प्रयोजन की पूर्ति ठीक तरह हो सकने संभव है।
The work of tree plantation had to do its own labor, making others understand its benefits; Both these tasks should go together. It was the volunteers who kept running and people remained inactive; Even then nothing will work. In fact, this work can be possible only by generating the desired concern among the people. Volunteers can only do the work of generating enthusiasm and guiding through their activities. To make the whole country green, there should be an increase in personal and social duty in every citizen. If the vision of beauty, beauty, health and solution of national and human problems can be added in the proximity of greenery, then only this purpose can be fulfilled properly.
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...