धर्म से मोक्ष तक की यात्रा काम, क्रोध, माध, मोह, दंभ, दुर्भाव, द्वेष आदि कई दुर्गम घाटियों व समुद्री तूफानों से होकर गुजरती है। इसमें दुर्घटना की काफी संभावना है। जीवन का बेडा बीच मझधार में फँस सकता है, डूब सकता है। धर्म की अपेक्षा कर इस मार्ग पर चलने वाले मुसाफिर बहुधा नहीं इन्हीं घाटियों में आकर दुर्घटनाग्रस्त होते हैं। कामनाओं, वासनाओं के भँवर में विलीन हो जाते हैं, फिर हताश-निराश होकर जीवन के परम लक्ष्य को पाए बिना ही इस संसार से विदा हो जाते हैं। मनुष्य के लिए सचमुच यह कितना अफसोस जनक है। कितना शर्मनाक से है ! कितना दुर्भाग्यपूर्ण है। परंतु अब पछताने से क्या लाभ ? जैसा कि कहा गया गया है। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
The journey from religion to salvation passes through many inaccessible valleys and sea storms like lust, anger, madh, attachment, conceit, malice, malice etc. There is a high chance of an accident in this. The raft of life can get stuck in the middle of the middle, it can drown. Expecting religion, the travelers walking on this path often come and crash in these valleys. They get absorbed in the whirlpool of desires, desires, then in despair and despair, they leave this world without achieving the ultimate goal of life. How sad it really is for man. How shameful! How unfortunate. But what's the use of repenting now? As stated. Now what would you regret when the bird ate the field?
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...