विकृत व्यवहारों का प्रशिक्षण भी वे अपने अभिभावकों से सीख लेते हैं। अतः उनके उचित-अनुचित निर्माण में माता-पिता का पूर्ण उत्तरदायित्व है। बहुत से माँ-बाप बच्चे पैदा करके उनके खिलाने-पिलाने तथा पढ़ने भेज देने में ही अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री समझते हैं। खिलाना-पिलाना तथा बच्चों का संरक्षण तो पशु भी करते हैं; मानवता इससे ऊँची है। वह सुसंस्कारों में निहित है। यह अधिकतर उपेक्षित रहती है। कुसंस्कारी संतान की बात है। इसके लिए प्रारंभ से ही उन्हें सजग रहना चाहिए और अपने निश्चित दायित्वों का अनिवार्य रूप से पालन करना चाहिए।
They also learn from their parents the training of perverse behaviours. Therefore, it is the full responsibility of the parents in their right and wrong creation. Many parents consider the end of their duties only in producing children and sending them to feed, feed and study. Animals also do the feeding and protection of children; Humanity is higher than this. It is rooted in rituals. It is mostly neglected. It's about having an illegitimate child. For this, they should be alert from the beginning and must follow their fixed responsibilities.
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...