विद्यालयों में तो किसी भी विषय की मात्र प्रारंभिक जानकारी ही दी जाती है। उपलब्ध ज्ञान के उपयोग और उसमें निरंतर नया जोड़ते रहने की वृत्ति अपनाकर जीवन व्यवसाय में सफल हुआ जा सकता है। व्यापार, व्यवसाय में लगाई जाने वाली पूँजी तो घाटा होने पर कम हो सकती है, किंतु ज्ञान-संपदा के साथ-'ज्यों-ज्यों खर्चे त्यों-त्यों बढे' वाली विशेष सुविधा जुडी हुई है। इसमें नुकसान तभी होता है, जब इसे न बढ़ाने का प्रयास किया जाए और न ही उसका कोई उपयोग किया जाए। उपयोग में न आया हुआ अथवा प्राप्त में संतोष किया हुआ ज्ञान विस्मृति के गर्त में गिरकर नष्ट हो जाता है।
In schools, only elementary information about any subject is given. By adopting the attitude of utilizing the available knowledge and continuously adding new ones to it, one can be successful in life business. The capital invested in business, business can be reduced if there is a loss, but with the knowledge-wealth - a special facility of 'increases as much as the expenses' is attached. There is harm in this only when no effort is made to increase it nor any use is made. The knowledge that is not used or satisfied with the attainment is destroyed by falling into the pit of forgetfulness.
Preliminary Information | Arya Samaj Bilaspur, 8989738486 | Arya Samaj Vivah Pooja Bilaspur | Inter Caste Marriage helpline Conductor Bilaspur | Official Web Portal of Arya Samaj Bilaspur | Arya Samaj Intercaste Matrimony Bilaspur | Arya Samaj Marriage Procedure Bilaspur | Arya Samaj Vivah Poojan Vidhi Bilaspur | Inter Caste Marriage Promotion Bilaspur | Official Website of Arya Samaj Bilaspur | Arya Samaj Legal Marriage Service Bilaspur | Arya Samaj Marriage Registration Bilaspur | Arya Samaj Vivah Vidhi Bilaspur | Inter Caste Marriage Promotion for Prevent of Untouchability Bilaspur | Pandits for Marriage Bilaspur | Arya Samaj Legal Wedding Bilaspur | Arya Samaj Marriage Rituals Bilaspur | Arya Samaj Wedding Bilaspur | Legal Marriage Bilaspur | Pandits for Pooja Bilaspur | Arya Samaj Mandir Bilaspur
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...