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वैदिक स्वर्ग का स्थान

महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्‍वर की प्राप्ति से आनन्द है, वही विशेष स्वर्ग कहाता है। महर्षि के अनुसार आकाश के किसी स्थान विशेष में स्वर्गलोक नामक कोई स्थान नहीं है। वे किसी काल्पनिक स्वर्गलोक की सत्ता को स्वीकार नहीं करते हैं। उनके अनुसार सुख-समृद्धि से परिपूर्ण जीवन ही स्वर्ग का जीवन है। सायणादि आचार्यों और मध्ययुगीन याज्ञिकों का यह विचार था कि अग्नि, वायु, इन्द्र आदि देवता वेदमंत्रों के द्वारा आहूत किए जाने पर न केवल हवियों का भक्षण करते हैं अपितु प्रसन्न होकर यजमान की कामनाओं को पूर्ण करते हैं और उसके मरने के बाद देवता उसे स्वर्गलोक में भेज देते हैं। ऐसा कोई स्वर्गलोक आज तक किसी को दिखाई नहीं दिया है। इस प्रकार स्वर्गलोक और उसके विपरीत नरकलोक की कल्पना पूर्णतः असत्य व भ्रामक है। इसका महर्षि ने कठोर शब्दों में निषेध किया है।•

Maharishi Dayanand Saraswati, while giving the definition of heaven in the ninth chapter of his great book Satyarth Prakash, has said that the name of a particular happiness is heaven and the name of a particular sorrow is hell. Self is the name of happiness. Swah sukham gacchati yasmin sa swargaah ato viparito dukhabhogho narak iti. The worldly happiness is called ordinary heaven and the joy from attaining God is called special heaven. According to Maharishi, there is no place called heaven in any particular place in the sky. They do not accept the existence of any imaginary heaven.

 

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    महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्‍वर...

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