कर्म शरीर से ही बन पड़ते हैं, पर उन्हें कर गुजरने के लिए न हाथ-पैर समर्थ हैं और न इंद्रिय समूह की स्वेच्छापूर्वक कुछ कर गुजरने में तत्परता होती है। इसके लिए मानसिक सहमति जरूरी है। घोडा चलता तो अपने पैरों से है, पर उसे किस दिशा में चलना है, कितनी तेजी से चलना है; इसका निर्धारण वह सवार करता है, जिसके हाथ में संकेत देने वाली लगाम है। हाथी महावत के इशारे को समझता है। इसी आधार पर वह अपने भारी-भरकम शरीर को किसी दिशाविशेष में निर्धारित गति को स्वीकार करके चलना आरंभ करता है। मन का क्रियाकलाप ही शरीर को कुछ करने के लिए उकसाता और तत्पर करता है। इसीलिए विचारों को ही कार्यों का प्रेरक माना गया है।
Actions are created by the body itself, but neither hands nor feet are able to do them, nor is there any readiness of the sense group to do something voluntarily. For this mental consent is necessary. The horse walks on its own feet, but in which direction it has to walk, how fast it has to walk; It is determined by the rider in whose hand is the pointing bridle. The elephant understands the mahout's gesture. On this basis, he accepts his heavy body in a particular direction and starts walking. It is the activity of the mind that provokes and makes the body ready to do something. That is why thoughts are considered to be the motivators of actions.
Mental Consent | Arya Samaj Bilaspur, 8989738486 | Arya Samaj Wedding Bilaspur | Legal Marriage Bilaspur | Pandits for Pooja Bilaspur | Arya Samaj Mandir Bilaspur | Arya Samaj Marriage Rules Bilaspur | Arya Samaj Wedding Ceremony Bilaspur | Legal Marriage Help Bilaspur | Procedure of Arya Samaj Marriage Bilaspur | Arya Samaj Mandir Helpline Bilaspur | Arya Samaj Online | Arya Samaj Wedding Rituals Bilaspur | Legal Marriage Helpline Bilaspur | Procedure of Arya Samaj Wedding Bilaspur | Arya Samaj Mandir Marriage Bilaspur | Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Bilaspur | Aryasamaj Mandir Marriage Helpline Bilaspur | Legal Marriage Helpline conductor Bilaspur | Validity of Arya Samaj Marriage Bilaspur | Arya Samaj Mandir Marriage Helpline Bilaspur Chhattisgarh
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...