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विशेष सूचना - Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज संस्कार केन्द्र अग्रसेन चौक बिलासपुर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित बिलासपुर में एकमात्र Legal केन्द्र है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज संस्कार केन्द्र अग्रसेन चौक बिलासपुर के अतिरिक्त बिलासपुर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Sanskar Kendra Agrasen Chouk Bilaspur is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Sanskar Kendra Agrasen Chouk Bilaspur is the only controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Chhattisgarh. We do not have any other branch or Centre in Bilaspur. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
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मानसिक सहमति

कर्म शरीर से ही बन पड़ते हैं, पर उन्हें कर गुजरने के लिए न हाथ-पैर समर्थ हैं और न इंद्रिय समूह की स्वेच्छापूर्वक कुछ कर गुजरने में तत्परता होती है। इसके लिए मानसिक सहमति जरूरी है। घोडा चलता तो अपने पैरों से है, पर उसे किस दिशा में चलना है, कितनी तेजी से चलना है; इसका निर्धारण वह सवार करता है, जिसके हाथ में संकेत देने वाली लगाम है। हाथी महावत के इशारे को समझता है। इसी आधार पर वह अपने भारी-भरकम शरीर को किसी दिशाविशेष में निर्धारित गति को स्वीकार करके चलना आरंभ करता है। मन का क्रियाकलाप ही शरीर को कुछ करने के लिए उकसाता और तत्पर करता है। इसीलिए विचारों को ही कार्यों का प्रेरक माना गया है।

Actions are created by the body itself, but neither hands nor feet are able to do them, nor is there any readiness of the sense group to do something voluntarily. For this mental consent is necessary. The horse walks on its own feet, but in which direction it has to walk, how fast it has to walk; It is determined by the rider in whose hand is the pointing bridle. The elephant understands the mahout's gesture. On this basis, he accepts his heavy body in a particular direction and starts walking. It is the activity of the mind that provokes and makes the body ready to do something. That is why thoughts are considered to be the motivators of actions.

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  • वैदिक स्वर्ग का स्थान

    महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्‍वर...

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