प्रल्हाद अपने पिता से बहुत प्रेम करते थे, लेकिन उन्होंने अपने पिता की अनुचित आज्ञा को स्वीकार नहीं किया। प्रेम करते-करते उनकी आज्ञा का पालन करना छोड़ दिया। हम भी ऐसी ही किसी ने नाराजगी जता सकते हैं। यह उसे रास्ते पर लाने का उपयुक्त ढंग है। शर्त यह है कि उसका आधार हमारा प्रेम हो। इस तरह हमारे आनंद, शांति, खुशहाली, गौरव, गरिमा में वृद्धि होती है। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम दूसरों को किस दृष्टिकोण से देखते हैं।
Prahlad loved his father very much, but he did not accept his father's unreasonable orders. While loving, he stopped obeying his orders. We can express our displeasure in the same way. This is the perfect way to get him on track. The condition is that its basis should be our love. In this way our joy, peace, happiness, pride, dignity increase. It is up to us how we view others.
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...