हमने अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए जंगलों का विनाश किया, धरती के आँचल को क्षत-विक्षत करके उसके अंदर बहने वाली जलधारा को सूखा दिया। संजीवनी प्रदान करने वाली व प्राणदायक वायु को हमने इतना अधिक प्रदूषित कर दिया है कि साँस लेते भी नहीं बनता है। कभी दूर-दूर तक पक्षियों की चहचाहट, नदियों-झरनों की सुमधुर आवाजें सुनाई देती थीं। आज ये आवाजें गाड़ियों, कारखानों के भीषण शोर में दब गईं हैं। प्रदुषण की मार एवं उसके प्रभाव से उत्पन्न अनेक समस्याओं से घिरा इनसान आज कराह रहा है। ऊपर से प्रकृतिचक्र की भीषण अनियमितता एवं असंतुलन इस आग में घी का काम कर रहे हैं।
We destroyed the forests for our petty selfishness, by eroding the surface of the earth and drying up the water flowing inside it. We have polluted the air that gives life-giving and life-giving so much that even breathing is not made. Sometimes the chirping of birds, the melodious sounds of rivers and streams could be heard far and wide. Today these voices have been suppressed in the horrific noise of trains, factories. Surrounded by many problems caused by pollution and its effects, man is groaning today. From above, the horrific irregularities and imbalances of the Prakriti Chakra are acting as fuel in this fire.
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...