प्रभु में विश्वास रखने वाले व्यक्ति तो प्रभु की भक्ति करने के लिए अनुकूल परिस्थिति के प्राप्त करने की इच्छा ही नहीं रखते हैं। वास्तविक सत्य तो यह है कि समस्याओं से जूझते हुए ईश्वर की भक्ति करने में जो आनन्द आता है वह आनन्द सभी सुविधाएँ प्राप्त होने पर नहीं आता। दूसरों को सुख देने के लिए अपने छोटे-छोटे दुःखों को भूल जाएं, यही मनुष्यता है। पशु तो अज्ञानी हैं वे तो नहीं कर सकते। संसार में दो प्रकार के व्यक्ति हैं, लेने और देने वाले। हो सकता है लेने वाले खाते अच्छा हों, पर देने वाले सोते अच्छा हैं।
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...