शास्त्रों के अनुसार चौरासी लाख योनियों में मनुष्य योनि ही सर्वश्रेष्ठ है। क्योंकि ? अन्य योनियों जैसे पशु-पक्षी, किट-पतंग आदि में रहते हुए जीव आत्मोद्धार, आत्मकल्याण, भगवत्प्राप्ति के विषय में न तो सोच सकता है और न ही कोई प्रयास-पुरुषार्थ कर सकता है। इसलिए मनुष्य योनि को छोड़कर अन्य योनियों को भोग योनि कहा गया है। भोग योनि इसलिए; क्योंकि जीव अपने कर्मों के अनुसार पशु-पक्षी, वृक्ष, कीट-पतंग आदि जिस भी योनि को प्राप्त हुआ है, उस योनि में रहकर उस योनि में उपलब्ध भोग पदार्थों का भोग मात्र कर सकता है। वह विषय-भोग, पेट-प्रजनन आदि की पूर्ति के लिए उछल-कूद, दौड़-भाग कर सकता है, पर इससे आगे की नहीं सोच सकता।
According to the scriptures, the human vagina is the best among the eighty-four lakh yonis. Because ? Living in other species like animals, birds, kites, kites, etc., the living entity can neither think about self-improvement, self-welfare, God-realization, nor can he make any effort or effort. That is why except the human vagina, other yonis are called bhog yoni. Therefore the enjoyment of the vagina; Because, according to his deeds, the animal-bird, tree, insect-moth, etc., whichever vagina has been received, can only enjoy the pleasures available in that vagina by staying in that vagina. He can jump, run and run for the fulfillment of pleasure, stomach-procreation, etc., but cannot think beyond this.
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...