ममता और वात्सल्य लुटाने के लिए समाज में बहुत से बच्चे हैं। यह कोई आवश्यक नहीं है की बच्चा अपनी ही संतान हो। जो विवाह की आवश्यकता अनुभव न करते हों वे अविवाहित ही रह लें और जो विवाह करना चाहें उन्हें तो संतान की आवश्यकता ही नहीं समझनी चाहिए या जिनके बच्चे हैं वे वहीँ तक सीमित रखें। पारिवारिक उत्तरदायित्वों को हलका रखने से लोकसेवा के लिए अधिक समय बच सकेगा और अपनी प्रतिभा तथा योग्यता का अधिकाधिक लाभ सामाज को दे सकेंगे। जापान के गाँधी का गावा की तरह वे भी विवाहित किन्तु संतान उत्पन्न न कर सारे समाज का उत्तरदायित्व सँभाल सकेंगे।
There are many children in the society to lavish love and affection. It is not necessary that the child should be his own child. Those who do not feel the need for marriage, they should remain unmarried and those who want to get married should not understand the need of children or keep them confined to those who have children. Keeping family responsibilities light will save more time for public service and give maximum benefit of their talents and abilities to the society. Like Gandhi's village of Japan, he too will be married but will be able to handle the responsibility of the whole society by not producing children.
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महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के नवें समुल्लास में स्वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा है कि सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक होता है। स्वः नाम सुख का होता है। स्वः सुखं गच्छति यस्मिन् स स्वर्गः अतो विपरीतो दुःखभोगो नरक इति। जो सांसारिक सुख है वह सामान्य स्वर्ग और जो परमेश्वर...